Tuesday, November 25, 2008

रामायण

रामायण कवि बाल्मीकि ने लिखी थी, जिसमें रधुवंश के राजा रामचन्द्र जी की गाथा कही गई है, जो संस्कृत में लिखा गया था। देश में विदेशियों की सत्ता हो जाने के बाद भारतीय लोग उचित ज्ञान के अभाव तथा विदेशी सत्ता के प्रभाव के कारण अपनी ही संस्कृति को भूलने लग गये । ऐसी स्थिति में जन जागरण के लिए महाज्ञानी सन्त तुलसीदास जी ने श्री राम की पवित्र कथा को देसी भाषा में लिखा। सन्त तुलसीदास जी ने अपने लिखे गंथ्र का नाम रामचरितमानस रखा। रामचरितमानस को तुलसीरामायण के नाम से जाना जाता है। इस के बाद कई लेखकों ने अपनी अपनी बुद्धि, और ज्ञान के अनुसार रामायण को अनेक बार लिखा है। इस तरह से अनेक रामायणें लिखी गई।
रामायण के सारे चरित्र अपने धर्म का पालन करते हैं।
• राम एक आदर्श पुत्र हैं। पिता की आज्ञा का पालन करते हैं।
• सीता पतिव्रता महान औरत है। वह सारे सुख छोड़ कर पति के साथ वन चली जाती है।
• रामायण भाई प्रेम का भी उदाहरण है। जैसे बड़े भाई के कारण लक्ष्मण उन के साथ वन चले जाते हैं वहीं भरत अयोध्या की राजगद्दी पर खुद न बैठ कर राम की चरण पादुका को गद्दी पर रख देते हैं।
• कौशल्या एक आदर्श माता है। अपने पुत्र राम पर कैकेयी के अन्याय को भुला कर उस के पुत्र भरत पर उतनी ही ममता रखती है जितनी कि अपने पुत्र राम पर।
• हनुमान एक आदर्श भक्त हैं। वे राम की सेवा के लिये सदा तैयार रहते हैं।
• रावण के चरित्र से सीख मिलती है कि अहंकार नाश का कारण होता है।
रामायण के चरित्रों से मनुष्य को बहुत सी अच्छी बातें सीखने को मिलती हैं।

भारत की मुख्य नदियाँ

एक बार मैंने भारत की नदियाँ के बारे में पढा था। आज़ मैं उनके बारे में लिखने की कोशिश करती हूं। भारत की नदियों को चार भागों में बांटा जा सकता है - हिमालयन (हिमालय से निकलने वाली नदियाँ), प्रायद्वीपीय (प्रायद्वीपों से निकलने वाली नदियाँ), तटीय (समुद्र तटों में बहने वाली नदियाँ) और देशी जल निकासी नदियाँ (जल निकास हेतु बहने वाली नदियाँ) वैसे तो भारत में छोटी-बड़ी हजारों नदियाँ हैं किन्तु गंगा, यमुना, सिंधु, गोदावरी ‌और नर्मदा को भारत की प्रमुख और पवित्र नदियाँ माना जाता है।
गंगा नदी: यह भारत की एक प्रमुख नदी है। गंगा नदी को भारत की पवित्र नदियों में सबसे पवित्र माना जाता है। कहा जाता है कि गंगा में स्नान करने से मनुष्य के सारे पापों का नाश हो जाता है। पुरानी कथाओं के अनुसार गंगा देवताओं की नदी है।
यमुना: यमुना गंगा की सहायक नदी है। यमुना भारत की दूसरी पवित्र नदी है। ऐसी मान्यता है कि यमुना सूर्य की पुत्री तथा यम की बहन है। दक्षिण से उत्तर की तरफ़ बहने वाली नदियाँ गंगा या यमुना में जाकर मिल जाती हैं।
सिंधु: हिमालय से निकलने वाली सिंधु नदी भी भारत की पवित्र नदियों में से एक है।
गोदावरी: गोदवरी नदी, जो कि भारत की पवित्र नदियों में से एक है, को "दक्षिण गंगा" के नाम से भी जाना जाता है। यह दक्षिण भारत की सबसे बड़ी और लम्बी नदी है।
नर्मदा:नर्मदा नदी पश्चिम की ओर बहने वाली नदियों में सबसे लम्बी नदी है। यह मध्य प्रदेश स्थित अमरकंटक से शुरू हो कर भड़ोंच के पास अरब सागर में मिल जाती है।

Tuesday, November 4, 2008

ताज महल cont

जब यहां से थोडा और आगे बढ़े तो गाइड ने एक बेंच दिखाई जहाँ बैठकर लोग फोटो खींचते और खींचाते हैं। गाइड ने बताया की इस बेंच को प्रिंसेस डायना के नाम से जोडा गया है क्योंकि जब वो भारत आयी थी तो उसने वहां दो घंटे तक फोटो खींचवायी थी। वहां से थोडा और आगे बढने पर उसने बताया की वहां पर सोलह बगीचे और चौव्वन फव्वारे हैं, और ये सारे फव्वारे एक लाईन में बने हैं, और जब हमनें देखा तो पाया कि वाकई में सारे फव्वारे बिल्कुल एक सीध में हैं।
गाइड ने ताजमहल की बाउंड्री वाल को दिखाकर बताया कि वह एक सौ तीस फ़ीट उँची है और ताज के ऊपर जो ब्रास लगा है उसकी ऊंचाई तीस फ़ीट है हालांकि वो देखने में ज्यादां ऊंचा नहीं लगता है। फिर वहां से बाईस सीढ़ियां चढ़कर ऊपर पहुंचे तो वहां ताज के चारों ओर जो पिलर हैं उन्हें दिखाकर कर उसने बताया कि ये पिलर थोड़े बाहर की ओर झुके हुए हैं जिससे अगर कभी कुछ हो जैसे भूकंप वगैरा तो ये पिलर बाहर की ओर गिरें जिससे ताज महल को कोई नुकसान ना हो। ताज महल के अन्दर अब तो सिर्फ शाहजहाँ और मुमताज महल की कब्र की रिप्लिका ही देखी जा सकती है क्योंकि पहले जिन सीढ़ियों से नीचे जाकर उनकी कब्र देखी जाती थी वो सीढियाँ अब बंद कर दी गयी हैं। वैसे तो बाहर बडे-बडे शब्दों मे लिखा है कि ताज महल के अन्दर फोटो खींचना मना है लेकिन लोग फोटो खींचने से कहॉ बाज आते हैं। अन्दर गाइड ने एक दीवार पर बने फूल को दिखाकर कहा कि बांई ओर जहाँ उस फूल को सीधा बनाया गया है वहां तो ॐ लिखा लगता है और दांई ओर जहाँ फूल को उल्टा बनाया है वहां अल्लाह लिखा हुआ लगता है। सारा दिन घूमने के बाद हम बाहर आ गये, फ़िर हम आगरा घूमें, खूब खरीदारी भी की

Tuesday, October 28, 2008

ताज महल cont

मुख्य द्वार पर बने गुम्बद की ओर इशारा करते हुए कहा कि ये देखने में तो ग्यारह लग रहे हैं लेकिन असल में ये बाईस हैं क्योंकि दरवाजे के दूसरी ओर भी ग्यारह बने हुए हैं। यहां से जैसे ही हम लोग मुख्य दरवाजे के अन्दर दाखिल हुए कि गाइड ने हम लोगों को रोककर बताया कि अगर सामने दिख रहे ताज महल को देखते हुए आगे की तरफ चलते हैं तो हमें ऐसा लगता है कि ताज महल पीछे जा रहा है, और अगर ताज महल को देखते हुए पीछे की तरफ चलते हैं तो ताज महल पास आता लगता है। हम सब लोगों ने भी चलकर देखा और ये महसूस किया की ताज महल पास आता और दूर जाता लगा। ये कोई भ्रम था या कुछ और ये हम नहीं कह सकते।

ताज महल cont

वैसे तो हम सभी जानते हैं कि शाहजहाँ ने अपनी बेगम मुमताज महल के लिए ताज महल बनवाया था जो उनकी मुहब्बत की निशानी है। ताज महल सफ़ेद मार्बल से बनाया गया है पर क्या आप जानते हैं और अगर जानते भी हैं तो भी हम बता देते हैं कि ये सारा मार्बल शाहजहाँ ने खुद खरीदा नहीं था बल्कि राजस्थान के राजा ने उन्हें उपहार स्वरूप भेंट किया था। ऐसा मेरे मामा जी ने बताया। खैर गाइड के पूछने पर हम लोगों ने सोचा की चलो इस बार गाइड के साथ-साथ ताज महल के बारे में क्यों ना जाना जाये। ऐसा सोचकर उस गाइड को साथ लिया और चल दिये चिलचिलाती धूप में। हम लोग थोडा धीरे-धीरे चलते हुए फोटो ले रहे थे तभी गाइड ने कहा कि हम लोग थोडा तेज चलें और वहां शेड में खडे हो जाएँ तो वो हमें ताज महल के बारे में बतायेगा। अब जब गाइड लिया था तो उसकी बात भी माननी थी सो हम लोग पेड़ की छांव में खडे हो गए तो उसने बताना शुरू किया कि ताज महल के चार दरवाजे हैं। अकबरी गेट ,फतेहपुरी गेट, लेबर कॉलोनी गेट, और ईस्टर्न गेट । फिर उसने चारों ओर बनी एक सी ईमारत को दिखा कर बताया कि ये सराय की तरह है जहाँ बाहर से लोग आकर ठहरते थे।

ताज महल

वैसे तो हम सभी ताज महल के बारे में जानते हैं। लेकिन फिर भी आज मैंने सोचा कि क्यों ना ताज महल के बारे में ही कुछ लिखा जाये । वो क्या है ना कि जब हम भारत धूमने गये थे तो मेरे मामा जी हमें आगरा ले कर गए थे ताज महल देखने। ऐसा नहीं है कि हम पहली बार ताज महल देखने गए थे, इससे पहले भी कई बार हम ताज महल देख चुके हैं लेकिन हर बार जब भी जाते हैं कुछ नया ही देखने को मिलता है। जैसे कि पहले तो कार बिल्कुल ताज महल के गेट तक जाती थी पर इस बार देखा कि सब कारें ताज महल से करीब आधा किलोमीटर पहले ही रोक दी जाती हैं और फिर वहां से बैटरी से चलने वाली बस से ताज महल के गेट तक जाना पड़ता है। क्योंकि ये सुप्रीम कोर्ट का आर्डर है ताज महल को प्रदूषण से बचाने के लिए। बस गेट पर टिकट खरीदें और चल दीजिए ताज महल देखने। तो हम लोगों ने भी अपनी कार पार्किंग में छोडी और चल दिए बैटरी वाली बस से ताज महल के गेट पर, वहां से टिकट लेकर जैसे ही सिक्यूरिटी चेक करा कर आगे बढ़े कि एक गाइड ने पूछा कि गाइड चाहिये क्या?

Monday, October 13, 2008

जयपुर

जयपुर जिसे गुलाबी नगरी (पिंक सिटि) के नाम से भी जाना जाता है, भारत के राजस्थान की राजधानी है। इसे भारत का पेरिस भी कहा जाता है। इस शहर की स्थापना सत्तहर सौ अठाइस में जयपुर के महाराजा जयसिंह द्वारा की गयी थी। जयपुर शहर की पहचान यहाँ के महलों और पुराने घरों में लगे गुलाबी पत्थरों से होती है। पूरा शहर करीब छह से ज्यादा भागों में बँटा है और चौड़ी सड़कों से विभाजित है।
जयपुर को आधुनिक शहरी योजनाकारी द्वारा सबसे नियोजित और व्यवस्थित शहरों में से गिना जाता है। यहाँ के मुख्य उद्योगों में धातु, संगमरमर, वस्त्र-छपाई, हस्त-कला, आभूषण का आयात-निर्यात आदि शामिल हैं।
जयपुर की रंगत अब बदल रही है, साथ ही बदल रही है इसकी आबोहवा, किन्तु पिछले तीन सौ साल पहले से सजे इस शहर में विकास का पहिया निरन्तर घूम रहा है। हाल में ही जयपुर को विश्व के दस सबसे खूबसूरत शहरों में शामिल किया गया है। यह जयपुर वासियों के लिये ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण भारत वासियों के लिये गर्व की बात है।
पिछले कुछ सालों से जयपुर में मेट्रो संस्कृति के दर्शन भी होने लगे हैं, चमचमाती सडकें, बहुमंजिला शापिंग माल, आधुनिकता को छूती आवासीय कालोनियां, आदि महानगरों की होड करती दिखती हैं। पुराने जयपुर और नये जयपुर में नई और पुरानी संस्कृति के दर्शन जैसे इस शहर को विकास और इतिहास दोनों को स्पष्ट करते हैं। प्रगति के पथ पर गुलाबी नगर गतिमान है और वह दिन दूर नहीं जब यह शहर महानगरों में शुमार हो जायेगा।
जयपुर में आने के बाद पता चलता है,कि हम किसी रजवाडे में प्रवेश कर गये हैं, शाही साफ़ा बांधे जयपुर के बना और लहंगा चुन्नी से सजी जयपुर की नारियां, गपशप मारते जयपुर के बुजुर्ग लोग, राजस्थान भाषा में कितनी प्यारी बोलियाँ, पधारो महारे देश जैसा स्वागत,और बैठो सा,जीमो सा,जैसी बातें,कितनी सुहावनी लगती है।जयपुर प्रेमी कहते हैं कि जयपुर के सौन्दर्य को देखने के लिये कुछ खास नजर चाहिये।

आज़ के युग की देशभक्ति

अब हमारा देश आज़ाद है। किसी की गुलामी नहीं है, तो फ़िर अब देशभक्त किसे कहते हैं। ब्रिटिश सरकार की गुलामी से छुटकारा पाने के लिए जो लोग लडते थे उन्हें देशभक्त कहते थे जैसे महात्मा गाधी, भगत सिंह, चन्द्र शेखर आज़ाद, जिन्होंने आज़ादी के लिए अपनी जाने तक दे दी। लेकिन अब तो हम आज़ाद हैं, और अब सीमा पर युद्ध भी नहीं हो रहा है कि लडने में सहयोग देने वाले को देशभक्त कहा जाए तो अब देशभक्त किसे कहते हैं ? ये विचार मेरे मन में कई बार आया। फ़िर एक दिन मम्मी से बातचीत करने पर मुझे एहसास हुआ कि अब देशभक्ति का मतलब बदल गया है। आज के युग में देशभक्त उसे कहते हैं जो देश की उन्नति में योगदान करे। उद्योग लगाना, उत्पादन को बढाने में योगदान देना, रोज़गार बढाने में मदद करना, देश को सुदृढ बनाने में योगदान देना देशभक्ति है। सिर्फ़ नारे लगाना, भाषण देना देशभक्ति नहीं है। आज़ किसी भी देश की प्रशन्सा उसकी आर्थिक स्थिति पर निर्भर है। जो देश आर्थिक रुप से सुदृढ हैं वहां हर व्यक्ति के पास खर्च करने को ढेरों पैसा है, सामान है, सुख सुविधायें है। यह स्थिति वहाँ नये कारखाने लगाने से, नई वस्तुए पैदा करने से, रोज़गार बढाने से आई है। ऐसे देश संसार के नेता कहलाते हैं।

Sunday, October 5, 2008

एक चाय का प्याला

“माँ माँ !” एक लड़का चिल्लाते हुए अपने घर पहुँच गया।
“क्या? राहुल, क्या हुआ?” राहुल की माँ बैठी चाय पी रही थी जब राहुल अन्दर पहुँचा, उसने वह चाय का कप मेज़ पर रख दिया और राहुल की तरफ़ देखा। राहुल हंस रहा था और उसके दोनो हाथ उसकी पीठ के पीछे थे, “तुम अपनी पीठ के पीछे मुझसे क्या छुपा रहे हो?”
राहुल ने हंसते हुए कहा, “आज सारे स्कूल ने एक परीक्षा लिखी थी, कुछ दो सो से ऊपर विद्धार्थी थे और फ़िर हमें पता लगा कि सिर्फ एक ही विद्धार्थी ने उस परीक्षा में पूरे अंक लिए।”
राहुल वहाँ रुक गया और उसकी माँ ने कहा, “और वो विद्धार्थी कौन था?”
“आप उसे जानते हो।”
माँ ने गुस्से से कहा, “पता दो ना!”
राहुल ने अपनी पीठ के पीछे से एक गोल्ड मैडल निकाल के उसकी माँ को दिखाया, “उस लड़के को ये मिला।”
माँ बहुत खुश हुई, “वाह वाह! ये तो बहुत अच्छा है।” वह चाय का कप उठा कर होली होली पीते हुए कहने लगी, “तुम्हें पता है? तुम्हारा भाई पिछले दो हफ्ते से एक तस्वीर पर काम कर रहा है। वह बहुत सुन्दर है, उसमें सुन्दर सुन्दर फ़ूल और पहाड़ हैं। मैं सोच रही थी कि जब वह खत्म हो जाएगी तो हम उसे यहां कहीं टांग देंगे। राजू उस पर दिन रात काम करता है, वह कितना मेहनती बेटा है।”
“मैं अपने कपड़े बदल कर आता हूँ।” राहुल ने कहा और वह अन्दर चला गया। अपने कमरे में पहुंच कर और खिड़की खोल कर उसने अपना मैडल बाहर फ़ेंक दिया। वह कमरे में कुछ ढूंढने लगा, तस्वीर बनाने के लिए।

घर के दूसरे कमरे से राजू दौड़ते हुए आया, “माँ माँ!”
राजू की माँ ने वही चाय का कप रखा और कहा, “राजू, क्या हुआ?”
राजू ने हंसते हुये कहा, “मैंने अपनी तस्वीर खत्म कर ली है, आ कर देखिये!”
माँ बहुत खुश हुई, “वाह वाह! ये तो बहुत अच्छा हुआ।” वह उसके चाय का कप उठा कर होली होली पीते हुए कहने लगी, “मुझे अपनी चाय तो खत्म करने दो। तुम्हें पता है? तुम्हारे भाई ने एक गोल्ड मैडल जीता उसकी पढ़ाई में। राहुल दिन रात पढ़ता है, वह कितना दिमागी बेटा है।”
“अच्छा आप बाद में देख लेना।” कह कर राजू अपने कमरे में पढ़ने चला गया।

राजू और राहुल की माँ ने अपना चाय का कप शान्ति से पीने लगी।

Tuesday, September 30, 2008

कठोरता की हद

एक बार एक जमींदार था। वह जमींदार होने के सात सात सेना में जनरल भी था। वह बहुत अमीर, बहुत घमंडी और बहुत कठोर दिल का आदमी था। उसके पास काफ़ी ज़मीन और खेत थे और ऊन खेतो में किसान ‘जनरल साहब’ के लिए काम करते थे। बेचारे किसान को जनरल का राज और धौंस सहना पड़ता था।
जनरल साहब को घोड़े और कुत्ते पालने का शौक था, उन में से उसे एक कुत्ता बहुत प्यारा था। वह उस कुत्ते को चैंपीयन पुकारता था और उसे अपने बेटे जैसे प्यार करता था।
एक दिन उसके यहां काम करने वाले एक किसान का पांच साल का बेटा उसके फ़ार्म में पत्थरो के सात खेल रहा था। खेलते खेलते गलती से एक पत्थर जमींदार के चैंपीयन की टांग पर जोर से लग गया। कुत्ता चिल्लाने लगा। यह देख कर जमींदार को गुस्सा आ गया। उसने उस बच्चे को भूखा प्यासा ठंडे तहखाने में दो दिन तक बन्द रखा। उसके माँ बाप का रो रो कर बुरा हाल हो गया। तीसरे दिन जमींदार ने उस बच्चे को तहखाने से बाहर निकाला, बच्चा ठंड से कांप रहा था। जमींदार ने उसे कहा – “भागो”। बच्चा डर कर भागने लगा, तभी जमींदार ने अपने भूखे कुत्ते उस बच्चे पर छोड़ दिये। कुत्तों ने बच्चे को नोच नोच कर मार दिया। सभी किसान जनरल की कठोरता को बेबसी से देखते रहे और आँखों में आँसू लिए वापिस काम पर चले गये। क्या ऐसे कठोर इन्सान को जीने का हक है ?

बुराई का फ़ल

एक बार एक बुरी औरत थी। उसने अपनी ज़िंदगी में कभी कोई अच्छा काम नहीं किया था। कभी किसी का भला नहीं चाहा। एक दिन वह मर गई। जब उसकी आत्मा को फरिश्ता भगवान के पास ले कर गया तो भगवान ने उसके बुरे कर्मों के कारण नरक में जाने का आदेश दिया। तभी फरिश्ते ने भगवान को कहा कि इस औरत ने अपनी ज़िंदगी में एक बार एक अच्छा काम किया है --- उसने एक भिखारी को एक आम का फ़ल दिया था, इस लिए उसे एक मौका दिया जाना चाहिए। भगवान ने कहा, “ठीक है, जाओ उसे एक मौका दो”। फ़रिश्ता नरक में गया और उस औरत से कहा, “तुमने एक अच्छा कर्म किया है इसलिये मेरा हाथ पकड़ो, मैं तुम्हें स्वर्ग में ले चलता हूं”। जैसे ही औरत ने फ़रिश्ते का हाथ पकड़ा और वह उसे ऊपर खींचने लगा तो कई और लोगों ने उस औरत के पैर पकड़ लिए, कहने लगे कि हमें भी ले चलो। उन से अपने पैर छुड़ाने के लिए वह अपनी टांगे हिलाने लगी और कहने लगी, “सिर्फ़ मैं जाऊँगी, तुम नहीं”। अपनी पैर छोड़ा के चक्कर में उसका हाथ फ़रिश्ते के हाथ से छूट गया और वह वापिस नरक में गिर गई।

Tuesday, September 23, 2008

भारत

भारत में दिन रात गरीबी और महंगाई बढ़ती जा रही हैं । हर रोज इस्तेमाल की चीज़ों जैसे दालों, फलों, मसालों, चीनी, नमक, दूध, चाय, तेल, डीजल के रेट बढ़ते जा रहे हैं । गरीब जनता की सेहत, बच्चों की पढ़ाई, नौकरी आदि की हालत भी खराब हैं । फैशन और बेरोज़गारी बढ़ती जा रही हैं । गरीब ज्यादां गरीब और अमीर ज्यादां अमीर होते जा रहे हैं । आज कल देश भक्त वह है जो बड़े बड़े भाषण देता हैं, नारे लगाता हैं, लेकिन अगर हम नारे लगाने, भाषण देने की जगह रोज़गार पर ध्यान दें तभी देश की तरक्की हो सकती है । इस लिए में सोचती हूँ कि असली देश भक्त वह हे जो रोज़गार में मदद करता है, देश की तरक्की में मदद करता है । जनता के खजाने का अधिक भाग देश की गरीबी दूर करने और बेरोज़गार दूर करने के लिए खर्च होना चाहिए नेताओं पर नहीं ।
अगर कभी मेरे पास बहुत पैसे हुए तो मैं एक बड़ा कारखाना या हस्पताल बनाने की कोशिश करूंगी और दिन रात मेहनत करके उसे इतना बड़ा बनाऊंगी कि हजारों लोगों को नौकरी मिल सके और देश की तरक्की हो सके । मेरे ख्याल से हम सब को अपने देश की तरक्की के लिए कुछ ना कुछ करना चाहिए ।

एक कहानी

एक आदमी शराब पी कर कार चला रहा था। नशे में होने कि वजह से कार सड़क पर इधर उधर जा रही थी। ठीक तरह से ना चलाने के कारण पुलिस ने उसे रोका। पुलिस वाला अभी उस आदमी से बात कर ही रहा था कि पास ही किसी दुसरी कार की पेड़ से टक्कर हो गई। पुलिस वाला उस आदमी को वहीं रुकने के लिए बोल कर दुसरी कार को देखने चला गया। शराबी आदमी ने सोचा कि मैं घर चला जाता हूँ पुलिस वाला मुझे नहीं पकड़ सकेगा और वह कार लेकर अपने घर चला गया। अगले दिन सुबह जब वह सो कर उठा तो दरवाजे पर रात वाला पुलिस मैन था। पुलिस वाले ने जब उसे रात की घटना के बारे मे पूछा तो उस आदमी ने चालाकी से कहा “मैंने आप को पहले कभी नहीं देखा”। तब पुलिस वाले ने कहा “अगर तुमने मुझे कभी नहीं देखा तो अपना गराज खोलो”। यह सुन कर वह आदमी हैरान हो गया पर पुलिस वाले के बार बार कहने पर उसे गराज खोलना पड़ा। गराज खुलने पर उन्होंने पुलिस वाले की कार गराज मे पाई। नशे की हालत में वह आदमी अपनी कार की जगह पुलिस वाले की कार घर ले आया था।

Tuesday, September 16, 2008

दिमाग

आज मैं सोच रही थी कि हम कैसे अपनी आँखों से देखते और कानों से एक साथ सुनते हैं। मुझे ये मालूम है कि आवाज एक किस्म की वेव होती है। और वे हवा मे तैर कर हमारे कानों में पहुँच कर वहाँ हमारे ईयर डर्म हिला कर हमें सुनाई देती है। पर रौशनी हमारी आँखों में कुछ नहीं हिलाती। वह आँखों में जा कर मुड़ जाती है ताकि हम देख सकें। वह ऐसे मुड़ जाती है कि सच में हमारी आँखें ऊपर को नीचे और नीचे को ऊपर देखती हैं पर हमारा दिमाग उसको लेकर उलट देता है ताकि हम असलियत देख सकें। लेकिन, अगर वह दिमाग ऐसी चीज़ करता है तो क्या हम सच में असलियत देख रहे हैं ? दिमाग और क्या करता है?
जब रौशनी कहीं जलती है तो हमें दूर से एक दम दिखाई देती है परन्तु अगर कोई दूर से बोले तो कुछ देर में सुनता है। तो प्रकाश आवाज से ज्यादां तेज चलता है। जब हम ताली बजाएँ तो हमे अपने ताली- वाले हाथ पहले दिखाई देंगें फिर ताली सुनाई देगी क्यों कि रौशनी आवाज से ज्यादां तेज चलती है । पर हमें दोनो एक साथ दिखते और सुनाई देते हैं। क्यों ? क्यों कि वह दिमाग उन दोनो को एक साथ मिलाकर हमें देता है। वैसे तो हमें पहले दिखाई देना चाहिए फिर सुनाई देना चाहिए लेकिन दिमाग के चमत्कार के कारण हमें सुनाई और दिखाई एक साथ देता है।

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कई साल बाद मैं भारत घूमने गई। मेरे माता, पिता और भाई भी मेरे साथ थे। हम सब बहुत खुश थे। सबसे पहले हम अम्बाला गये, वहाँ मैं अपने नाना जी, नाना जी, मामा जी, मामी जी, और भाई से मिले। सब से मिल कर हम बहुत खुश थे। मैं मामी जी के साथ बाज़ार गई और हम ने खूब खरीददारी की। कपडे, गहने, जूते आदि खरीदे। मैं अपने दोस्तों से भी मिली। फिर हम सब घूमने जयपुर गये जिसे पिन्क सिटी कहते हैं। वहां हमने पुराने किले देखे। सारे शह कि इमारतें गुलाबी रंग कि ती। फ़िर हम आगरा गये, वह हमने ताज महल देख़ा। हमारे गाइड ने बताया कि ताज महल शाहजहाँ ने अपनी महारानी मुमताज महल कि यादों में बनाया था यह प्रेम का प्रतीक हैं। सफ़ेद संगमरमर का ताज महल मुझे बहुत अच्छा लगा। उसके बाद हम हिमाचल में जिला ऊना गये वहां मेरे पिताजी का घर है। वहां हम दादा-जी, दादी-जी, और कई रिश्तेदारों से मिले। उसके बाद हम शिमला गये, वहाँ हम ख़ूब घुमे, ख़रीददारी की, घुड सवारी भी की। फ़िर हम फ़न-सिटी गये। वहां पर हमने तरह-तरह के झूले लिये, कश्ती चलाई, स्विमिंग की और बहुत मज़ा किया। मुझे मेरा भारत बहुत अच्छा लगता है।

Thursday, September 11, 2008

कभी- कभी मैं सोचती हूं कि कया हम आज़ाद हैं ? क्या हम कुछ भी कर सकते हैं बिना अपना हित सोचे, नहीं, कयोंकि हम हमेंशा वही काम करते हैं जो हमारे लिऐ अच्छे होते हैं। पिछले सप्ताह मैंने एक किताब पढ़ी, जिसका नाम था “नोटस फरोम दी अन्डरगराउड” उसका लेखक था डोसटोएफसकी, वह रशिया का रहने वाला था। उसने बहुत सारी किताबें लिखी जैसे कि, “द बर्दरस कारामाज़ाफ” और “कराइम एन्ड पनिशमैंट”। उस की “नोटस फरोम दी अन्डरगराउड” कहानी मे एक आदमी बार- बार ऐसे काम करता है जो उसके हित मे नही हैं, उसे दुख पहुचाते हैं और उस की जिन्दगी में मुशि्कलें पैदा करते हैं। क्योंकि वह सोचता है कि वह आज़ाद तभी है जब वह कुछ भी कर सकता है। जैसे अपने सारे पैसे किसी को दे देता है यह जानते हुए कि अगले दिन किराया भी देना है, छोटी-मोटी नौकरी करता है जब कि अच्छी नौकरी की काबिलीयत रखता है। वो साबित करना चाहता है कि वह आज़ाद है। किसी का गोलाम नहीं है अपने आप का भी नही। इस कहानी को पढने के बाद मुझे ऐसा लगा कि आदमी गुलाम है, अपनी इच्छा का गुलाम, आज़ाद नहीं। लेकिन इस कहानी का करैटर बहुत बहादुर है, असल जिन्दगी में यह सम्भव नही होसकता है।

Tuesday, September 9, 2008

कहानी

यह एक कहानी है। ये एक झूठ- मूठ की कहानी है, आप के लिए और मेरे लिए। क्योंकि झूठी कहानियां लिखने और पढने में मज़ा आता है तो यह झूठी कहानी पढ़िये।
जब मैं छोटी थी मुझे बाहर खेलने का बहुत शोक था। एक दिन मैं एक पेड़ के नीचे खेल रही थी। खेलते खेलते मैं पेड़ के ऊपर चढ गई। मेरा सारा ध्यान ऊपर चढने में था कि मुझे पता ही नही चला कि मैं कितनी ऊपर चढ गयी। मैने एक बार भी नीचे नही देखा बस ऊपर ही चढती चली गई। फ़िर मेरा पैर फ़िसल गया और मैं गिरने लगी। जैसे ही मैं गिर रही थी मैने अपने दोनो हाथों से एक टहनी पकड़ ली। मैं वहां उस टहनी से बहुत देर लटकी रही। मेरी दोनो बाजू दर्द करने लगे। दर्द के मारे मेरी आंखों मे आंसू आ गये और मैं जोर जोर से रोने लगी। उसके आगे मुझे याद नही क्या हुआ। मुझे ये भी याद नही कि जमीन पर गिरने के बाद मेरी कोई हड्डी टूटी या नही। मुझे बस यही याद है कि जब मैं टहनी पर लटकी हुई थी तो मुझे बहुत दर्द सहना पड़ा था और मैं जोर जोर से रो रही थी।