यह एक कहानी है। ये एक झूठ- मूठ की कहानी है, आप के लिए और मेरे लिए। क्योंकि झूठी कहानियां लिखने और पढने में मज़ा आता है तो यह झूठी कहानी पढ़िये।
जब मैं छोटी थी मुझे बाहर खेलने का बहुत शोक था। एक दिन मैं एक पेड़ के नीचे खेल रही थी। खेलते खेलते मैं पेड़ के ऊपर चढ गई। मेरा सारा ध्यान ऊपर चढने में था कि मुझे पता ही नही चला कि मैं कितनी ऊपर चढ गयी। मैने एक बार भी नीचे नही देखा बस ऊपर ही चढती चली गई। फ़िर मेरा पैर फ़िसल गया और मैं गिरने लगी। जैसे ही मैं गिर रही थी मैने अपने दोनो हाथों से एक टहनी पकड़ ली। मैं वहां उस टहनी से बहुत देर लटकी रही। मेरी दोनो बाजू दर्द करने लगे। दर्द के मारे मेरी आंखों मे आंसू आ गये और मैं जोर जोर से रोने लगी। उसके आगे मुझे याद नही क्या हुआ। मुझे ये भी याद नही कि जमीन पर गिरने के बाद मेरी कोई हड्डी टूटी या नही। मुझे बस यही याद है कि जब मैं टहनी पर लटकी हुई थी तो मुझे बहुत दर्द सहना पड़ा था और मैं जोर जोर से रो रही थी।
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