Tuesday, October 28, 2008

ताज महल cont

मुख्य द्वार पर बने गुम्बद की ओर इशारा करते हुए कहा कि ये देखने में तो ग्यारह लग रहे हैं लेकिन असल में ये बाईस हैं क्योंकि दरवाजे के दूसरी ओर भी ग्यारह बने हुए हैं। यहां से जैसे ही हम लोग मुख्य दरवाजे के अन्दर दाखिल हुए कि गाइड ने हम लोगों को रोककर बताया कि अगर सामने दिख रहे ताज महल को देखते हुए आगे की तरफ चलते हैं तो हमें ऐसा लगता है कि ताज महल पीछे जा रहा है, और अगर ताज महल को देखते हुए पीछे की तरफ चलते हैं तो ताज महल पास आता लगता है। हम सब लोगों ने भी चलकर देखा और ये महसूस किया की ताज महल पास आता और दूर जाता लगा। ये कोई भ्रम था या कुछ और ये हम नहीं कह सकते।

ताज महल cont

वैसे तो हम सभी जानते हैं कि शाहजहाँ ने अपनी बेगम मुमताज महल के लिए ताज महल बनवाया था जो उनकी मुहब्बत की निशानी है। ताज महल सफ़ेद मार्बल से बनाया गया है पर क्या आप जानते हैं और अगर जानते भी हैं तो भी हम बता देते हैं कि ये सारा मार्बल शाहजहाँ ने खुद खरीदा नहीं था बल्कि राजस्थान के राजा ने उन्हें उपहार स्वरूप भेंट किया था। ऐसा मेरे मामा जी ने बताया। खैर गाइड के पूछने पर हम लोगों ने सोचा की चलो इस बार गाइड के साथ-साथ ताज महल के बारे में क्यों ना जाना जाये। ऐसा सोचकर उस गाइड को साथ लिया और चल दिये चिलचिलाती धूप में। हम लोग थोडा धीरे-धीरे चलते हुए फोटो ले रहे थे तभी गाइड ने कहा कि हम लोग थोडा तेज चलें और वहां शेड में खडे हो जाएँ तो वो हमें ताज महल के बारे में बतायेगा। अब जब गाइड लिया था तो उसकी बात भी माननी थी सो हम लोग पेड़ की छांव में खडे हो गए तो उसने बताना शुरू किया कि ताज महल के चार दरवाजे हैं। अकबरी गेट ,फतेहपुरी गेट, लेबर कॉलोनी गेट, और ईस्टर्न गेट । फिर उसने चारों ओर बनी एक सी ईमारत को दिखा कर बताया कि ये सराय की तरह है जहाँ बाहर से लोग आकर ठहरते थे।

ताज महल

वैसे तो हम सभी ताज महल के बारे में जानते हैं। लेकिन फिर भी आज मैंने सोचा कि क्यों ना ताज महल के बारे में ही कुछ लिखा जाये । वो क्या है ना कि जब हम भारत धूमने गये थे तो मेरे मामा जी हमें आगरा ले कर गए थे ताज महल देखने। ऐसा नहीं है कि हम पहली बार ताज महल देखने गए थे, इससे पहले भी कई बार हम ताज महल देख चुके हैं लेकिन हर बार जब भी जाते हैं कुछ नया ही देखने को मिलता है। जैसे कि पहले तो कार बिल्कुल ताज महल के गेट तक जाती थी पर इस बार देखा कि सब कारें ताज महल से करीब आधा किलोमीटर पहले ही रोक दी जाती हैं और फिर वहां से बैटरी से चलने वाली बस से ताज महल के गेट तक जाना पड़ता है। क्योंकि ये सुप्रीम कोर्ट का आर्डर है ताज महल को प्रदूषण से बचाने के लिए। बस गेट पर टिकट खरीदें और चल दीजिए ताज महल देखने। तो हम लोगों ने भी अपनी कार पार्किंग में छोडी और चल दिए बैटरी वाली बस से ताज महल के गेट पर, वहां से टिकट लेकर जैसे ही सिक्यूरिटी चेक करा कर आगे बढ़े कि एक गाइड ने पूछा कि गाइड चाहिये क्या?

Monday, October 13, 2008

जयपुर

जयपुर जिसे गुलाबी नगरी (पिंक सिटि) के नाम से भी जाना जाता है, भारत के राजस्थान की राजधानी है। इसे भारत का पेरिस भी कहा जाता है। इस शहर की स्थापना सत्तहर सौ अठाइस में जयपुर के महाराजा जयसिंह द्वारा की गयी थी। जयपुर शहर की पहचान यहाँ के महलों और पुराने घरों में लगे गुलाबी पत्थरों से होती है। पूरा शहर करीब छह से ज्यादा भागों में बँटा है और चौड़ी सड़कों से विभाजित है।
जयपुर को आधुनिक शहरी योजनाकारी द्वारा सबसे नियोजित और व्यवस्थित शहरों में से गिना जाता है। यहाँ के मुख्य उद्योगों में धातु, संगमरमर, वस्त्र-छपाई, हस्त-कला, आभूषण का आयात-निर्यात आदि शामिल हैं।
जयपुर की रंगत अब बदल रही है, साथ ही बदल रही है इसकी आबोहवा, किन्तु पिछले तीन सौ साल पहले से सजे इस शहर में विकास का पहिया निरन्तर घूम रहा है। हाल में ही जयपुर को विश्व के दस सबसे खूबसूरत शहरों में शामिल किया गया है। यह जयपुर वासियों के लिये ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण भारत वासियों के लिये गर्व की बात है।
पिछले कुछ सालों से जयपुर में मेट्रो संस्कृति के दर्शन भी होने लगे हैं, चमचमाती सडकें, बहुमंजिला शापिंग माल, आधुनिकता को छूती आवासीय कालोनियां, आदि महानगरों की होड करती दिखती हैं। पुराने जयपुर और नये जयपुर में नई और पुरानी संस्कृति के दर्शन जैसे इस शहर को विकास और इतिहास दोनों को स्पष्ट करते हैं। प्रगति के पथ पर गुलाबी नगर गतिमान है और वह दिन दूर नहीं जब यह शहर महानगरों में शुमार हो जायेगा।
जयपुर में आने के बाद पता चलता है,कि हम किसी रजवाडे में प्रवेश कर गये हैं, शाही साफ़ा बांधे जयपुर के बना और लहंगा चुन्नी से सजी जयपुर की नारियां, गपशप मारते जयपुर के बुजुर्ग लोग, राजस्थान भाषा में कितनी प्यारी बोलियाँ, पधारो महारे देश जैसा स्वागत,और बैठो सा,जीमो सा,जैसी बातें,कितनी सुहावनी लगती है।जयपुर प्रेमी कहते हैं कि जयपुर के सौन्दर्य को देखने के लिये कुछ खास नजर चाहिये।

आज़ के युग की देशभक्ति

अब हमारा देश आज़ाद है। किसी की गुलामी नहीं है, तो फ़िर अब देशभक्त किसे कहते हैं। ब्रिटिश सरकार की गुलामी से छुटकारा पाने के लिए जो लोग लडते थे उन्हें देशभक्त कहते थे जैसे महात्मा गाधी, भगत सिंह, चन्द्र शेखर आज़ाद, जिन्होंने आज़ादी के लिए अपनी जाने तक दे दी। लेकिन अब तो हम आज़ाद हैं, और अब सीमा पर युद्ध भी नहीं हो रहा है कि लडने में सहयोग देने वाले को देशभक्त कहा जाए तो अब देशभक्त किसे कहते हैं ? ये विचार मेरे मन में कई बार आया। फ़िर एक दिन मम्मी से बातचीत करने पर मुझे एहसास हुआ कि अब देशभक्ति का मतलब बदल गया है। आज के युग में देशभक्त उसे कहते हैं जो देश की उन्नति में योगदान करे। उद्योग लगाना, उत्पादन को बढाने में योगदान देना, रोज़गार बढाने में मदद करना, देश को सुदृढ बनाने में योगदान देना देशभक्ति है। सिर्फ़ नारे लगाना, भाषण देना देशभक्ति नहीं है। आज़ किसी भी देश की प्रशन्सा उसकी आर्थिक स्थिति पर निर्भर है। जो देश आर्थिक रुप से सुदृढ हैं वहां हर व्यक्ति के पास खर्च करने को ढेरों पैसा है, सामान है, सुख सुविधायें है। यह स्थिति वहाँ नये कारखाने लगाने से, नई वस्तुए पैदा करने से, रोज़गार बढाने से आई है। ऐसे देश संसार के नेता कहलाते हैं।

Sunday, October 5, 2008

एक चाय का प्याला

“माँ माँ !” एक लड़का चिल्लाते हुए अपने घर पहुँच गया।
“क्या? राहुल, क्या हुआ?” राहुल की माँ बैठी चाय पी रही थी जब राहुल अन्दर पहुँचा, उसने वह चाय का कप मेज़ पर रख दिया और राहुल की तरफ़ देखा। राहुल हंस रहा था और उसके दोनो हाथ उसकी पीठ के पीछे थे, “तुम अपनी पीठ के पीछे मुझसे क्या छुपा रहे हो?”
राहुल ने हंसते हुए कहा, “आज सारे स्कूल ने एक परीक्षा लिखी थी, कुछ दो सो से ऊपर विद्धार्थी थे और फ़िर हमें पता लगा कि सिर्फ एक ही विद्धार्थी ने उस परीक्षा में पूरे अंक लिए।”
राहुल वहाँ रुक गया और उसकी माँ ने कहा, “और वो विद्धार्थी कौन था?”
“आप उसे जानते हो।”
माँ ने गुस्से से कहा, “पता दो ना!”
राहुल ने अपनी पीठ के पीछे से एक गोल्ड मैडल निकाल के उसकी माँ को दिखाया, “उस लड़के को ये मिला।”
माँ बहुत खुश हुई, “वाह वाह! ये तो बहुत अच्छा है।” वह चाय का कप उठा कर होली होली पीते हुए कहने लगी, “तुम्हें पता है? तुम्हारा भाई पिछले दो हफ्ते से एक तस्वीर पर काम कर रहा है। वह बहुत सुन्दर है, उसमें सुन्दर सुन्दर फ़ूल और पहाड़ हैं। मैं सोच रही थी कि जब वह खत्म हो जाएगी तो हम उसे यहां कहीं टांग देंगे। राजू उस पर दिन रात काम करता है, वह कितना मेहनती बेटा है।”
“मैं अपने कपड़े बदल कर आता हूँ।” राहुल ने कहा और वह अन्दर चला गया। अपने कमरे में पहुंच कर और खिड़की खोल कर उसने अपना मैडल बाहर फ़ेंक दिया। वह कमरे में कुछ ढूंढने लगा, तस्वीर बनाने के लिए।

घर के दूसरे कमरे से राजू दौड़ते हुए आया, “माँ माँ!”
राजू की माँ ने वही चाय का कप रखा और कहा, “राजू, क्या हुआ?”
राजू ने हंसते हुये कहा, “मैंने अपनी तस्वीर खत्म कर ली है, आ कर देखिये!”
माँ बहुत खुश हुई, “वाह वाह! ये तो बहुत अच्छा हुआ।” वह उसके चाय का कप उठा कर होली होली पीते हुए कहने लगी, “मुझे अपनी चाय तो खत्म करने दो। तुम्हें पता है? तुम्हारे भाई ने एक गोल्ड मैडल जीता उसकी पढ़ाई में। राहुल दिन रात पढ़ता है, वह कितना दिमागी बेटा है।”
“अच्छा आप बाद में देख लेना।” कह कर राजू अपने कमरे में पढ़ने चला गया।

राजू और राहुल की माँ ने अपना चाय का कप शान्ति से पीने लगी।