Tuesday, September 30, 2008

कठोरता की हद

एक बार एक जमींदार था। वह जमींदार होने के सात सात सेना में जनरल भी था। वह बहुत अमीर, बहुत घमंडी और बहुत कठोर दिल का आदमी था। उसके पास काफ़ी ज़मीन और खेत थे और ऊन खेतो में किसान ‘जनरल साहब’ के लिए काम करते थे। बेचारे किसान को जनरल का राज और धौंस सहना पड़ता था।
जनरल साहब को घोड़े और कुत्ते पालने का शौक था, उन में से उसे एक कुत्ता बहुत प्यारा था। वह उस कुत्ते को चैंपीयन पुकारता था और उसे अपने बेटे जैसे प्यार करता था।
एक दिन उसके यहां काम करने वाले एक किसान का पांच साल का बेटा उसके फ़ार्म में पत्थरो के सात खेल रहा था। खेलते खेलते गलती से एक पत्थर जमींदार के चैंपीयन की टांग पर जोर से लग गया। कुत्ता चिल्लाने लगा। यह देख कर जमींदार को गुस्सा आ गया। उसने उस बच्चे को भूखा प्यासा ठंडे तहखाने में दो दिन तक बन्द रखा। उसके माँ बाप का रो रो कर बुरा हाल हो गया। तीसरे दिन जमींदार ने उस बच्चे को तहखाने से बाहर निकाला, बच्चा ठंड से कांप रहा था। जमींदार ने उसे कहा – “भागो”। बच्चा डर कर भागने लगा, तभी जमींदार ने अपने भूखे कुत्ते उस बच्चे पर छोड़ दिये। कुत्तों ने बच्चे को नोच नोच कर मार दिया। सभी किसान जनरल की कठोरता को बेबसी से देखते रहे और आँखों में आँसू लिए वापिस काम पर चले गये। क्या ऐसे कठोर इन्सान को जीने का हक है ?

बुराई का फ़ल

एक बार एक बुरी औरत थी। उसने अपनी ज़िंदगी में कभी कोई अच्छा काम नहीं किया था। कभी किसी का भला नहीं चाहा। एक दिन वह मर गई। जब उसकी आत्मा को फरिश्ता भगवान के पास ले कर गया तो भगवान ने उसके बुरे कर्मों के कारण नरक में जाने का आदेश दिया। तभी फरिश्ते ने भगवान को कहा कि इस औरत ने अपनी ज़िंदगी में एक बार एक अच्छा काम किया है --- उसने एक भिखारी को एक आम का फ़ल दिया था, इस लिए उसे एक मौका दिया जाना चाहिए। भगवान ने कहा, “ठीक है, जाओ उसे एक मौका दो”। फ़रिश्ता नरक में गया और उस औरत से कहा, “तुमने एक अच्छा कर्म किया है इसलिये मेरा हाथ पकड़ो, मैं तुम्हें स्वर्ग में ले चलता हूं”। जैसे ही औरत ने फ़रिश्ते का हाथ पकड़ा और वह उसे ऊपर खींचने लगा तो कई और लोगों ने उस औरत के पैर पकड़ लिए, कहने लगे कि हमें भी ले चलो। उन से अपने पैर छुड़ाने के लिए वह अपनी टांगे हिलाने लगी और कहने लगी, “सिर्फ़ मैं जाऊँगी, तुम नहीं”। अपनी पैर छोड़ा के चक्कर में उसका हाथ फ़रिश्ते के हाथ से छूट गया और वह वापिस नरक में गिर गई।

Tuesday, September 23, 2008

भारत

भारत में दिन रात गरीबी और महंगाई बढ़ती जा रही हैं । हर रोज इस्तेमाल की चीज़ों जैसे दालों, फलों, मसालों, चीनी, नमक, दूध, चाय, तेल, डीजल के रेट बढ़ते जा रहे हैं । गरीब जनता की सेहत, बच्चों की पढ़ाई, नौकरी आदि की हालत भी खराब हैं । फैशन और बेरोज़गारी बढ़ती जा रही हैं । गरीब ज्यादां गरीब और अमीर ज्यादां अमीर होते जा रहे हैं । आज कल देश भक्त वह है जो बड़े बड़े भाषण देता हैं, नारे लगाता हैं, लेकिन अगर हम नारे लगाने, भाषण देने की जगह रोज़गार पर ध्यान दें तभी देश की तरक्की हो सकती है । इस लिए में सोचती हूँ कि असली देश भक्त वह हे जो रोज़गार में मदद करता है, देश की तरक्की में मदद करता है । जनता के खजाने का अधिक भाग देश की गरीबी दूर करने और बेरोज़गार दूर करने के लिए खर्च होना चाहिए नेताओं पर नहीं ।
अगर कभी मेरे पास बहुत पैसे हुए तो मैं एक बड़ा कारखाना या हस्पताल बनाने की कोशिश करूंगी और दिन रात मेहनत करके उसे इतना बड़ा बनाऊंगी कि हजारों लोगों को नौकरी मिल सके और देश की तरक्की हो सके । मेरे ख्याल से हम सब को अपने देश की तरक्की के लिए कुछ ना कुछ करना चाहिए ।

एक कहानी

एक आदमी शराब पी कर कार चला रहा था। नशे में होने कि वजह से कार सड़क पर इधर उधर जा रही थी। ठीक तरह से ना चलाने के कारण पुलिस ने उसे रोका। पुलिस वाला अभी उस आदमी से बात कर ही रहा था कि पास ही किसी दुसरी कार की पेड़ से टक्कर हो गई। पुलिस वाला उस आदमी को वहीं रुकने के लिए बोल कर दुसरी कार को देखने चला गया। शराबी आदमी ने सोचा कि मैं घर चला जाता हूँ पुलिस वाला मुझे नहीं पकड़ सकेगा और वह कार लेकर अपने घर चला गया। अगले दिन सुबह जब वह सो कर उठा तो दरवाजे पर रात वाला पुलिस मैन था। पुलिस वाले ने जब उसे रात की घटना के बारे मे पूछा तो उस आदमी ने चालाकी से कहा “मैंने आप को पहले कभी नहीं देखा”। तब पुलिस वाले ने कहा “अगर तुमने मुझे कभी नहीं देखा तो अपना गराज खोलो”। यह सुन कर वह आदमी हैरान हो गया पर पुलिस वाले के बार बार कहने पर उसे गराज खोलना पड़ा। गराज खुलने पर उन्होंने पुलिस वाले की कार गराज मे पाई। नशे की हालत में वह आदमी अपनी कार की जगह पुलिस वाले की कार घर ले आया था।

Tuesday, September 16, 2008

दिमाग

आज मैं सोच रही थी कि हम कैसे अपनी आँखों से देखते और कानों से एक साथ सुनते हैं। मुझे ये मालूम है कि आवाज एक किस्म की वेव होती है। और वे हवा मे तैर कर हमारे कानों में पहुँच कर वहाँ हमारे ईयर डर्म हिला कर हमें सुनाई देती है। पर रौशनी हमारी आँखों में कुछ नहीं हिलाती। वह आँखों में जा कर मुड़ जाती है ताकि हम देख सकें। वह ऐसे मुड़ जाती है कि सच में हमारी आँखें ऊपर को नीचे और नीचे को ऊपर देखती हैं पर हमारा दिमाग उसको लेकर उलट देता है ताकि हम असलियत देख सकें। लेकिन, अगर वह दिमाग ऐसी चीज़ करता है तो क्या हम सच में असलियत देख रहे हैं ? दिमाग और क्या करता है?
जब रौशनी कहीं जलती है तो हमें दूर से एक दम दिखाई देती है परन्तु अगर कोई दूर से बोले तो कुछ देर में सुनता है। तो प्रकाश आवाज से ज्यादां तेज चलता है। जब हम ताली बजाएँ तो हमे अपने ताली- वाले हाथ पहले दिखाई देंगें फिर ताली सुनाई देगी क्यों कि रौशनी आवाज से ज्यादां तेज चलती है । पर हमें दोनो एक साथ दिखते और सुनाई देते हैं। क्यों ? क्यों कि वह दिमाग उन दोनो को एक साथ मिलाकर हमें देता है। वैसे तो हमें पहले दिखाई देना चाहिए फिर सुनाई देना चाहिए लेकिन दिमाग के चमत्कार के कारण हमें सुनाई और दिखाई एक साथ देता है।

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कई साल बाद मैं भारत घूमने गई। मेरे माता, पिता और भाई भी मेरे साथ थे। हम सब बहुत खुश थे। सबसे पहले हम अम्बाला गये, वहाँ मैं अपने नाना जी, नाना जी, मामा जी, मामी जी, और भाई से मिले। सब से मिल कर हम बहुत खुश थे। मैं मामी जी के साथ बाज़ार गई और हम ने खूब खरीददारी की। कपडे, गहने, जूते आदि खरीदे। मैं अपने दोस्तों से भी मिली। फिर हम सब घूमने जयपुर गये जिसे पिन्क सिटी कहते हैं। वहां हमने पुराने किले देखे। सारे शह कि इमारतें गुलाबी रंग कि ती। फ़िर हम आगरा गये, वह हमने ताज महल देख़ा। हमारे गाइड ने बताया कि ताज महल शाहजहाँ ने अपनी महारानी मुमताज महल कि यादों में बनाया था यह प्रेम का प्रतीक हैं। सफ़ेद संगमरमर का ताज महल मुझे बहुत अच्छा लगा। उसके बाद हम हिमाचल में जिला ऊना गये वहां मेरे पिताजी का घर है। वहां हम दादा-जी, दादी-जी, और कई रिश्तेदारों से मिले। उसके बाद हम शिमला गये, वहाँ हम ख़ूब घुमे, ख़रीददारी की, घुड सवारी भी की। फ़िर हम फ़न-सिटी गये। वहां पर हमने तरह-तरह के झूले लिये, कश्ती चलाई, स्विमिंग की और बहुत मज़ा किया। मुझे मेरा भारत बहुत अच्छा लगता है।

Thursday, September 11, 2008

कभी- कभी मैं सोचती हूं कि कया हम आज़ाद हैं ? क्या हम कुछ भी कर सकते हैं बिना अपना हित सोचे, नहीं, कयोंकि हम हमेंशा वही काम करते हैं जो हमारे लिऐ अच्छे होते हैं। पिछले सप्ताह मैंने एक किताब पढ़ी, जिसका नाम था “नोटस फरोम दी अन्डरगराउड” उसका लेखक था डोसटोएफसकी, वह रशिया का रहने वाला था। उसने बहुत सारी किताबें लिखी जैसे कि, “द बर्दरस कारामाज़ाफ” और “कराइम एन्ड पनिशमैंट”। उस की “नोटस फरोम दी अन्डरगराउड” कहानी मे एक आदमी बार- बार ऐसे काम करता है जो उसके हित मे नही हैं, उसे दुख पहुचाते हैं और उस की जिन्दगी में मुशि्कलें पैदा करते हैं। क्योंकि वह सोचता है कि वह आज़ाद तभी है जब वह कुछ भी कर सकता है। जैसे अपने सारे पैसे किसी को दे देता है यह जानते हुए कि अगले दिन किराया भी देना है, छोटी-मोटी नौकरी करता है जब कि अच्छी नौकरी की काबिलीयत रखता है। वो साबित करना चाहता है कि वह आज़ाद है। किसी का गोलाम नहीं है अपने आप का भी नही। इस कहानी को पढने के बाद मुझे ऐसा लगा कि आदमी गुलाम है, अपनी इच्छा का गुलाम, आज़ाद नहीं। लेकिन इस कहानी का करैटर बहुत बहादुर है, असल जिन्दगी में यह सम्भव नही होसकता है।

Tuesday, September 9, 2008

कहानी

यह एक कहानी है। ये एक झूठ- मूठ की कहानी है, आप के लिए और मेरे लिए। क्योंकि झूठी कहानियां लिखने और पढने में मज़ा आता है तो यह झूठी कहानी पढ़िये।
जब मैं छोटी थी मुझे बाहर खेलने का बहुत शोक था। एक दिन मैं एक पेड़ के नीचे खेल रही थी। खेलते खेलते मैं पेड़ के ऊपर चढ गई। मेरा सारा ध्यान ऊपर चढने में था कि मुझे पता ही नही चला कि मैं कितनी ऊपर चढ गयी। मैने एक बार भी नीचे नही देखा बस ऊपर ही चढती चली गई। फ़िर मेरा पैर फ़िसल गया और मैं गिरने लगी। जैसे ही मैं गिर रही थी मैने अपने दोनो हाथों से एक टहनी पकड़ ली। मैं वहां उस टहनी से बहुत देर लटकी रही। मेरी दोनो बाजू दर्द करने लगे। दर्द के मारे मेरी आंखों मे आंसू आ गये और मैं जोर जोर से रोने लगी। उसके आगे मुझे याद नही क्या हुआ। मुझे ये भी याद नही कि जमीन पर गिरने के बाद मेरी कोई हड्डी टूटी या नही। मुझे बस यही याद है कि जब मैं टहनी पर लटकी हुई थी तो मुझे बहुत दर्द सहना पड़ा था और मैं जोर जोर से रो रही थी।