Monday, October 13, 2008

आज़ के युग की देशभक्ति

अब हमारा देश आज़ाद है। किसी की गुलामी नहीं है, तो फ़िर अब देशभक्त किसे कहते हैं। ब्रिटिश सरकार की गुलामी से छुटकारा पाने के लिए जो लोग लडते थे उन्हें देशभक्त कहते थे जैसे महात्मा गाधी, भगत सिंह, चन्द्र शेखर आज़ाद, जिन्होंने आज़ादी के लिए अपनी जाने तक दे दी। लेकिन अब तो हम आज़ाद हैं, और अब सीमा पर युद्ध भी नहीं हो रहा है कि लडने में सहयोग देने वाले को देशभक्त कहा जाए तो अब देशभक्त किसे कहते हैं ? ये विचार मेरे मन में कई बार आया। फ़िर एक दिन मम्मी से बातचीत करने पर मुझे एहसास हुआ कि अब देशभक्ति का मतलब बदल गया है। आज के युग में देशभक्त उसे कहते हैं जो देश की उन्नति में योगदान करे। उद्योग लगाना, उत्पादन को बढाने में योगदान देना, रोज़गार बढाने में मदद करना, देश को सुदृढ बनाने में योगदान देना देशभक्ति है। सिर्फ़ नारे लगाना, भाषण देना देशभक्ति नहीं है। आज़ किसी भी देश की प्रशन्सा उसकी आर्थिक स्थिति पर निर्भर है। जो देश आर्थिक रुप से सुदृढ हैं वहां हर व्यक्ति के पास खर्च करने को ढेरों पैसा है, सामान है, सुख सुविधायें है। यह स्थिति वहाँ नये कारखाने लगाने से, नई वस्तुए पैदा करने से, रोज़गार बढाने से आई है। ऐसे देश संसार के नेता कहलाते हैं।

Sunday, October 5, 2008

एक चाय का प्याला

“माँ माँ !” एक लड़का चिल्लाते हुए अपने घर पहुँच गया।
“क्या? राहुल, क्या हुआ?” राहुल की माँ बैठी चाय पी रही थी जब राहुल अन्दर पहुँचा, उसने वह चाय का कप मेज़ पर रख दिया और राहुल की तरफ़ देखा। राहुल हंस रहा था और उसके दोनो हाथ उसकी पीठ के पीछे थे, “तुम अपनी पीठ के पीछे मुझसे क्या छुपा रहे हो?”
राहुल ने हंसते हुए कहा, “आज सारे स्कूल ने एक परीक्षा लिखी थी, कुछ दो सो से ऊपर विद्धार्थी थे और फ़िर हमें पता लगा कि सिर्फ एक ही विद्धार्थी ने उस परीक्षा में पूरे अंक लिए।”
राहुल वहाँ रुक गया और उसकी माँ ने कहा, “और वो विद्धार्थी कौन था?”
“आप उसे जानते हो।”
माँ ने गुस्से से कहा, “पता दो ना!”
राहुल ने अपनी पीठ के पीछे से एक गोल्ड मैडल निकाल के उसकी माँ को दिखाया, “उस लड़के को ये मिला।”
माँ बहुत खुश हुई, “वाह वाह! ये तो बहुत अच्छा है।” वह चाय का कप उठा कर होली होली पीते हुए कहने लगी, “तुम्हें पता है? तुम्हारा भाई पिछले दो हफ्ते से एक तस्वीर पर काम कर रहा है। वह बहुत सुन्दर है, उसमें सुन्दर सुन्दर फ़ूल और पहाड़ हैं। मैं सोच रही थी कि जब वह खत्म हो जाएगी तो हम उसे यहां कहीं टांग देंगे। राजू उस पर दिन रात काम करता है, वह कितना मेहनती बेटा है।”
“मैं अपने कपड़े बदल कर आता हूँ।” राहुल ने कहा और वह अन्दर चला गया। अपने कमरे में पहुंच कर और खिड़की खोल कर उसने अपना मैडल बाहर फ़ेंक दिया। वह कमरे में कुछ ढूंढने लगा, तस्वीर बनाने के लिए।

घर के दूसरे कमरे से राजू दौड़ते हुए आया, “माँ माँ!”
राजू की माँ ने वही चाय का कप रखा और कहा, “राजू, क्या हुआ?”
राजू ने हंसते हुये कहा, “मैंने अपनी तस्वीर खत्म कर ली है, आ कर देखिये!”
माँ बहुत खुश हुई, “वाह वाह! ये तो बहुत अच्छा हुआ।” वह उसके चाय का कप उठा कर होली होली पीते हुए कहने लगी, “मुझे अपनी चाय तो खत्म करने दो। तुम्हें पता है? तुम्हारे भाई ने एक गोल्ड मैडल जीता उसकी पढ़ाई में। राहुल दिन रात पढ़ता है, वह कितना दिमागी बेटा है।”
“अच्छा आप बाद में देख लेना।” कह कर राजू अपने कमरे में पढ़ने चला गया।

राजू और राहुल की माँ ने अपना चाय का कप शान्ति से पीने लगी।

Tuesday, September 30, 2008

कठोरता की हद

एक बार एक जमींदार था। वह जमींदार होने के सात सात सेना में जनरल भी था। वह बहुत अमीर, बहुत घमंडी और बहुत कठोर दिल का आदमी था। उसके पास काफ़ी ज़मीन और खेत थे और ऊन खेतो में किसान ‘जनरल साहब’ के लिए काम करते थे। बेचारे किसान को जनरल का राज और धौंस सहना पड़ता था।
जनरल साहब को घोड़े और कुत्ते पालने का शौक था, उन में से उसे एक कुत्ता बहुत प्यारा था। वह उस कुत्ते को चैंपीयन पुकारता था और उसे अपने बेटे जैसे प्यार करता था।
एक दिन उसके यहां काम करने वाले एक किसान का पांच साल का बेटा उसके फ़ार्म में पत्थरो के सात खेल रहा था। खेलते खेलते गलती से एक पत्थर जमींदार के चैंपीयन की टांग पर जोर से लग गया। कुत्ता चिल्लाने लगा। यह देख कर जमींदार को गुस्सा आ गया। उसने उस बच्चे को भूखा प्यासा ठंडे तहखाने में दो दिन तक बन्द रखा। उसके माँ बाप का रो रो कर बुरा हाल हो गया। तीसरे दिन जमींदार ने उस बच्चे को तहखाने से बाहर निकाला, बच्चा ठंड से कांप रहा था। जमींदार ने उसे कहा – “भागो”। बच्चा डर कर भागने लगा, तभी जमींदार ने अपने भूखे कुत्ते उस बच्चे पर छोड़ दिये। कुत्तों ने बच्चे को नोच नोच कर मार दिया। सभी किसान जनरल की कठोरता को बेबसी से देखते रहे और आँखों में आँसू लिए वापिस काम पर चले गये। क्या ऐसे कठोर इन्सान को जीने का हक है ?

बुराई का फ़ल

एक बार एक बुरी औरत थी। उसने अपनी ज़िंदगी में कभी कोई अच्छा काम नहीं किया था। कभी किसी का भला नहीं चाहा। एक दिन वह मर गई। जब उसकी आत्मा को फरिश्ता भगवान के पास ले कर गया तो भगवान ने उसके बुरे कर्मों के कारण नरक में जाने का आदेश दिया। तभी फरिश्ते ने भगवान को कहा कि इस औरत ने अपनी ज़िंदगी में एक बार एक अच्छा काम किया है --- उसने एक भिखारी को एक आम का फ़ल दिया था, इस लिए उसे एक मौका दिया जाना चाहिए। भगवान ने कहा, “ठीक है, जाओ उसे एक मौका दो”। फ़रिश्ता नरक में गया और उस औरत से कहा, “तुमने एक अच्छा कर्म किया है इसलिये मेरा हाथ पकड़ो, मैं तुम्हें स्वर्ग में ले चलता हूं”। जैसे ही औरत ने फ़रिश्ते का हाथ पकड़ा और वह उसे ऊपर खींचने लगा तो कई और लोगों ने उस औरत के पैर पकड़ लिए, कहने लगे कि हमें भी ले चलो। उन से अपने पैर छुड़ाने के लिए वह अपनी टांगे हिलाने लगी और कहने लगी, “सिर्फ़ मैं जाऊँगी, तुम नहीं”। अपनी पैर छोड़ा के चक्कर में उसका हाथ फ़रिश्ते के हाथ से छूट गया और वह वापिस नरक में गिर गई।

Tuesday, September 23, 2008

भारत

भारत में दिन रात गरीबी और महंगाई बढ़ती जा रही हैं । हर रोज इस्तेमाल की चीज़ों जैसे दालों, फलों, मसालों, चीनी, नमक, दूध, चाय, तेल, डीजल के रेट बढ़ते जा रहे हैं । गरीब जनता की सेहत, बच्चों की पढ़ाई, नौकरी आदि की हालत भी खराब हैं । फैशन और बेरोज़गारी बढ़ती जा रही हैं । गरीब ज्यादां गरीब और अमीर ज्यादां अमीर होते जा रहे हैं । आज कल देश भक्त वह है जो बड़े बड़े भाषण देता हैं, नारे लगाता हैं, लेकिन अगर हम नारे लगाने, भाषण देने की जगह रोज़गार पर ध्यान दें तभी देश की तरक्की हो सकती है । इस लिए में सोचती हूँ कि असली देश भक्त वह हे जो रोज़गार में मदद करता है, देश की तरक्की में मदद करता है । जनता के खजाने का अधिक भाग देश की गरीबी दूर करने और बेरोज़गार दूर करने के लिए खर्च होना चाहिए नेताओं पर नहीं ।
अगर कभी मेरे पास बहुत पैसे हुए तो मैं एक बड़ा कारखाना या हस्पताल बनाने की कोशिश करूंगी और दिन रात मेहनत करके उसे इतना बड़ा बनाऊंगी कि हजारों लोगों को नौकरी मिल सके और देश की तरक्की हो सके । मेरे ख्याल से हम सब को अपने देश की तरक्की के लिए कुछ ना कुछ करना चाहिए ।

एक कहानी

एक आदमी शराब पी कर कार चला रहा था। नशे में होने कि वजह से कार सड़क पर इधर उधर जा रही थी। ठीक तरह से ना चलाने के कारण पुलिस ने उसे रोका। पुलिस वाला अभी उस आदमी से बात कर ही रहा था कि पास ही किसी दुसरी कार की पेड़ से टक्कर हो गई। पुलिस वाला उस आदमी को वहीं रुकने के लिए बोल कर दुसरी कार को देखने चला गया। शराबी आदमी ने सोचा कि मैं घर चला जाता हूँ पुलिस वाला मुझे नहीं पकड़ सकेगा और वह कार लेकर अपने घर चला गया। अगले दिन सुबह जब वह सो कर उठा तो दरवाजे पर रात वाला पुलिस मैन था। पुलिस वाले ने जब उसे रात की घटना के बारे मे पूछा तो उस आदमी ने चालाकी से कहा “मैंने आप को पहले कभी नहीं देखा”। तब पुलिस वाले ने कहा “अगर तुमने मुझे कभी नहीं देखा तो अपना गराज खोलो”। यह सुन कर वह आदमी हैरान हो गया पर पुलिस वाले के बार बार कहने पर उसे गराज खोलना पड़ा। गराज खुलने पर उन्होंने पुलिस वाले की कार गराज मे पाई। नशे की हालत में वह आदमी अपनी कार की जगह पुलिस वाले की कार घर ले आया था।

Tuesday, September 16, 2008

दिमाग

आज मैं सोच रही थी कि हम कैसे अपनी आँखों से देखते और कानों से एक साथ सुनते हैं। मुझे ये मालूम है कि आवाज एक किस्म की वेव होती है। और वे हवा मे तैर कर हमारे कानों में पहुँच कर वहाँ हमारे ईयर डर्म हिला कर हमें सुनाई देती है। पर रौशनी हमारी आँखों में कुछ नहीं हिलाती। वह आँखों में जा कर मुड़ जाती है ताकि हम देख सकें। वह ऐसे मुड़ जाती है कि सच में हमारी आँखें ऊपर को नीचे और नीचे को ऊपर देखती हैं पर हमारा दिमाग उसको लेकर उलट देता है ताकि हम असलियत देख सकें। लेकिन, अगर वह दिमाग ऐसी चीज़ करता है तो क्या हम सच में असलियत देख रहे हैं ? दिमाग और क्या करता है?
जब रौशनी कहीं जलती है तो हमें दूर से एक दम दिखाई देती है परन्तु अगर कोई दूर से बोले तो कुछ देर में सुनता है। तो प्रकाश आवाज से ज्यादां तेज चलता है। जब हम ताली बजाएँ तो हमे अपने ताली- वाले हाथ पहले दिखाई देंगें फिर ताली सुनाई देगी क्यों कि रौशनी आवाज से ज्यादां तेज चलती है । पर हमें दोनो एक साथ दिखते और सुनाई देते हैं। क्यों ? क्यों कि वह दिमाग उन दोनो को एक साथ मिलाकर हमें देता है। वैसे तो हमें पहले दिखाई देना चाहिए फिर सुनाई देना चाहिए लेकिन दिमाग के चमत्कार के कारण हमें सुनाई और दिखाई एक साथ देता है।