Tuesday, September 16, 2008

दिमाग

आज मैं सोच रही थी कि हम कैसे अपनी आँखों से देखते और कानों से एक साथ सुनते हैं। मुझे ये मालूम है कि आवाज एक किस्म की वेव होती है। और वे हवा मे तैर कर हमारे कानों में पहुँच कर वहाँ हमारे ईयर डर्म हिला कर हमें सुनाई देती है। पर रौशनी हमारी आँखों में कुछ नहीं हिलाती। वह आँखों में जा कर मुड़ जाती है ताकि हम देख सकें। वह ऐसे मुड़ जाती है कि सच में हमारी आँखें ऊपर को नीचे और नीचे को ऊपर देखती हैं पर हमारा दिमाग उसको लेकर उलट देता है ताकि हम असलियत देख सकें। लेकिन, अगर वह दिमाग ऐसी चीज़ करता है तो क्या हम सच में असलियत देख रहे हैं ? दिमाग और क्या करता है?
जब रौशनी कहीं जलती है तो हमें दूर से एक दम दिखाई देती है परन्तु अगर कोई दूर से बोले तो कुछ देर में सुनता है। तो प्रकाश आवाज से ज्यादां तेज चलता है। जब हम ताली बजाएँ तो हमे अपने ताली- वाले हाथ पहले दिखाई देंगें फिर ताली सुनाई देगी क्यों कि रौशनी आवाज से ज्यादां तेज चलती है । पर हमें दोनो एक साथ दिखते और सुनाई देते हैं। क्यों ? क्यों कि वह दिमाग उन दोनो को एक साथ मिलाकर हमें देता है। वैसे तो हमें पहले दिखाई देना चाहिए फिर सुनाई देना चाहिए लेकिन दिमाग के चमत्कार के कारण हमें सुनाई और दिखाई एक साथ देता है।

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